
सबसे पहले जानते है खरपतवार क्या है-
खरपतवार (Weed) पेड़ पौधो का ही एकरूप होते है, यह एक तरह के अवांछित पौधे होते है, जो किसी स्थान पर अपने आप ही बिना बोए उग आते है यह किसानो के लिए ज्यादा हानिकारक साबित होते है क्योकि यह खरपतवार अपने निकट उपस्थित पौधों की वृद्धि को दबाकर उपज को घटा देता है |
खरीफ़ फसलों में मुख्य तीन प्रकार के खरपतवार पाए जाते है
1) घांस वर्ग के खरपतवार:-

घांस वर्ग के खरपतवार– इसमें पत्तिया लम्बी और पतली होती है जैसे सांवा, गुजघांस, दुब घांस। जंगली राइस, कलार घांस।
2) चौड़ी पत्ती के खरपतवार:-

चौड़ी पत्ती के खरपतवार– कंटीली चौलाई, मकोय, चौलाई, गाजर घांस, हजार दाना चाकोड़ा, केना या कनकावा, हथिसुंडा।
3) नरकट खरपतवार:-

नरकट खरपतवार– इसकी पत्तिया लम्बी व किनारे ठोस होते है जैसे मोथा, नगरमोथा, माकरा।
खरपतवार नियंत्रण की प्रमुख विधियां है जैसे कि –
1. भौतिक विधियां
2. सस्य वैज्ञानिक विधियां
3. रासायनिक विधियां
1. भौतिक विधियां –इसको यांत्रिक विधियां भी कहते है यह विधि पुराने समय से प्रचलित है इस विधि में हाथ से उखाड़ना, निराई गुड़ाई, जल भराव, मल्च का प्रयोग, भू–परिष्करण क्रियाओं, भूमि की सतह पर आग से जलाना जैसे क्रियाएँ की जाती है।
2. सस्य वैज्ञानिक विधियां– कृषि के प्रारम्भ से ही खरपतवारों को नष्ट करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जा रहा है। इस विधि में फसल चक्र, फसल का चुनाव, जुताई की प्रक्रिया, बुवाई का समय, बुवाई की गहराइयाँ, बीज दर, मिट्टी सुधार, उर्वरक का प्रयोग इत्यादि विधियाँ इसके अंतर्गत आता है।
3. रासायनिक विधियां – हमारे देश में रासायनिक विधियों द्वारा खरपतवारो पर नियंत्रण लगभग सन 1945 से प्रारम्भ हुआ था।इस समय लगभग 400 तरह के खरपतवार नाशक अलग अलग कंपनियों द्वारा बना कर बेचने के लिए बाजार में उपलब्ध है।
खरपतवारों के नियंत्रण के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक विधिया है जैसे
1. वरणात्मक खरपतवारनाशी ( selective herbicides )
ये खरपतवारनाशक कुछ विशेष प्रकार खरपतवारों पर ही अपना प्रभाव दिखाते है, ये फसल के पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते है। इन का प्रयोग मुख्यतः कृषि के क्षेत्रों में किया जाता है। इसके दो प्रकार होते है –
1. पर्णीय छिड़काव
2. भूमि पर छिड़काव
2. अवरणात्मक खरपतवारनाशी ( non-selective Herbicides )
ये खरपतवार नाशक खरपतवारों के साथ–साथ फसलों को पौधों को भी नुकसान पहुंचाते है। इस खरपतवारनाशक का प्रयोग मुख्यतः अकृषि क्षेत्रों में व फसल लगने के पहल भूमि पर भी किया जाता है। इसके भी दो प्रकार होते है –
1. पर्णीय छिड़काव
2. भूमि पर छिड़काव
( पर्णीय छिड़काव – इस विधि में खरपतवारनाशक का छिड़काव पत्तियों पर किया जाता है। )
(भूमि पर छिड़काव – इस विधि में खरपतवारनाशक का छिड़काव खरपतवार के उगने के पहले या उगने के तुरंत पश्चात भूमि पर किया जाता है। )
धान के खरपतवारों के नियंत्रण:-
चौड़ी पत्ती के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 2-4 D सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत का उपयोग 650 ग्राम दवा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। पतली पत्ती वाले खरपतवार के धान के अंकुरण के पूर्व प्रेटीलाक्लोर या एनीलोफास 50 प्रतिशत ई. सी. 1.6 लीटर या प्रति हेक्टेयर की दर से या पायेजोसल्फ्युरान 10% WP का छिड़काव कर सकते है। यदि खरपतवार 3 से 4 पत्तियां हो चुकी हो तो बिसपायरीबैक सोडियम 10 प्रतिशतएस. सी. या फिनॉक्साप्रॉपपी- इथाइल 9.3% या फिनॉक्साप्रॉप+क्लोरीम्यरॉन+मेटसल्फ़्यूरॉन 10% WP या पिनॉक्सुलाम का छिड़काव कर सकते है।
धान की सीधी बुवाई में ब्यूटाक्लोर 50 ई.सी. याबेनथि ओकार्ब 50 ई.सी. 2 ली. प्रति हेक्टेयर का छिड़काव बुआई करने के एक दो दिन के बाद 2 ली. दवा को 800 ली. पानी में घोल कर स्प्रेयर से छिड़काव कर सकते है, धान के रोपाई विधि के लिएअनिलोफ़ॉस 3 ई.सी. 04 ली/ हेक्टेयर या ऑक्सीफ्लोरफेन 200 ग्रा./हेक्टेयर या ब्यूटाक्लोर 50 ई.सी. 2 ली./ हेक्टेयर का छिड़काव रोपाई करने के पाँच से सात दिनों के बाद कर सकते है। छिड़काव के समय खेत में 5 सें.मी. से अधिक पानी नहीं रहना चाहिए।
अरहर के खरपतवारों के नियंत्रण:-
अरहर के सभी खरपतवार के नियंत्रण के लिए Imazethapyr 10% Sl 1 लीटर को एक हेक्टेयर में बुवाई के 20-25 दिन बाद छिड़काव कर सकते है।
मक्का के खरपतवारों के नियंत्रण:-
मक्का के खरपतवार के नियंत्रण के लिए एट्राजीन 50 प्रतिशतWP 1.5 किग्रा./हेक्टेयर का छिड़काव बुआई करने के एक या दो दिनों के बाद कर सकते हैं।
तिल के खरपतवारों के नियंत्रण:-
तिल के खरपतवार के नियंत्रण के लिए एलोक्लोर 50 ई.सीका छिड़काव बुआई करने के एक या दो दिनों के बाद कर सकते हैं।
सोयाबीन के खरपतवारों के नियंत्रण:-
सोयाबीन के खरपतवार के नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरालिन 45 ई.सी. का छिड़काव खेत की अंतिम तैयारी के समय करते है।
खरीफ सीजन के अन्य फसलों को खरपतवार से बचाने के लिए बुवाई के बाद अंकुरण के पहले 72 घंटे के अंदर पेन्डामेथिलीन 38.7 CS का छिड़काव कर सकते है।
निष्कर्षतः-
भरपूर फसल सुनिश्चित करने, टिकाऊ कृषि बनाए रखने और किसानों की आजीविका सुरक्षित करने के लिए ख़रीफ़ सीज़न के दौरान सक्रिय खरपतवार प्रबंधन आवश्यक है। उचित रणनीति अपनाकर और फसल के पूरे मौसम में सतर्क रहकर, हम खरपतवारों के नकारात्मक प्रभाव को सफलतापूर्वक कम कर सकते हैं और स्वस्थ, समृद्ध फसलें उगा सकते हैं। साथ मिलकर, हम अधिक टिकाऊ और उत्पादक कृषि भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं।